संघ शताब्दी वर्ष पर ‘पंच परिवर्तन से समाज परिवर्तन’ का आह्वान, विश्व का सबसे बड़ा स्वैच्छिक संगठन आरएसएस नई ऊर्जा के साथ शताब्दी उत्सव में अग्रसर

संघ शताब्दी वर्ष पर ‘पंच परिवर्तन से समाज परिवर्तन’ का आह्वान, विश्व का सबसे बड़ा स्वैच्छिक संगठन आरएसएस नई ऊर्जा के साथ शताब्दी उत्सव में अग्रसर

रुड़की : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में देशभर में “पंच परिवर्तन से समाज परिवर्तन” का आह्वान किया जा रहा है। संघ, जो आज विश्व का सबसे बड़ा सर्वस्पर्शी, सर्वव्यापी और सर्वग्राही संगठन बन चुका है, शताब्दी वर्ष के दौरान सात प्रमुख प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है। इसी क्रम में रुड़की नगर की 17 बस्तियों — महाराणा प्रताप, ज्योतिबा फुले, शिवाजी, भगीरथ, दयानंद, तिलक, विक्रमादित्य, सुभाष, श्रीराम, गीतांजलि, सुदर्शन, गणेश, आज़ाद, विवेकानंद, श्रीकृष्ण, माधव और केशव — में विजयदशमी उत्सव एवं पथ संचलन कार्यक्रम आयोजित किए गए।

 “समरसता और कर्तव्य ही श्रीराम का आदर्श” — बौद्धिक प्रमुख भास्कर

संघ के विभाग बौद्धिक प्रमुख भास्कर जी ने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने अपने जीवन में सामाजिक समरसता, कर्तव्य पालन और राष्ट्र सेवा का आदर्श प्रस्तुत किया। इन्हीं आदर्शों से प्रेरित होकर डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में विजयदशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी। आज संघ 60 से अधिक देशों में सनातन विचारधारा के प्रचार-प्रसार में कार्यरत है।

सेवा से स्वावलंबन तक — 100 वर्षों की यात्रा

संघ ने अपने सौ वर्षीय इतिहास में लाखों कार्यकर्ता, शाखाएँ और सहायक संगठन तैयार किए हैं। भूकंप, बाढ़, महामारी जैसे संकटों में संघ कार्यकर्ताओं ने सेवा की मिसाल पेश की। वनवासी और वंचित क्षेत्रों में शिक्षा, संस्कार और सामाजिक समरसता के लिए कार्य करते हुए संघ ने “एक कुआँ, एक मंदिर, एक श्मशान” की अवधारणा को बल दिया है।

संघ का संघर्ष और योगदान

भास्कर ने बताया कि 1940 से 1990 तक संघ को अनेक प्रतिबंधों, विरोधों और झूठे आरोपों का सामना करना पड़ा। गांधीजी की हत्या, आपातकाल और रामजन्मभूमि आंदोलन के दौरान संघ पर तीन बार प्रतिबंध लगाया गया। फिर भी संघ ने सेवा, संगठन और संस्कार को अपने कार्य का आधार बनाकर राष्ट्र निर्माण की दिशा में निरंतर कदम बढ़ाए।

विभाग प्रचार प्रमुख अनिल ने बताया कि 1962, 1965 और 1971 के युद्धों में संघ कार्यकर्ताओं ने सेना की सहायता की। प्रधानमंत्री नेहरू के निमंत्रण पर 1963 की गणतंत्र दिवस परेड में 3000 गणवेशधारी स्वयंसेवकों ने भाग लिया था।

“पंच परिवर्तन से समाज परिवर्तन” — संघ का वर्तमान दृष्टिकोण

संघ के अधिकारी राजकुमार, पदम, अजय, अनिल, भास्कर, राहुल, प्रवीण और सतीश ने बताया कि संघ वर्तमान समय में कुटुंब प्रबोधन के माध्यम से “स्वभाषा, स्वभोजन, स्वभजन, स्वभ्रमण और स्वभूषा” पर आधारित पंच परिवर्तन से समाज परिवर्तन का अभियान चला रहा है। इसके साथ ही सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी अपनाने, नागरिक शिष्टाचार और सामाजिक सद्भाव जैसी गतिविधियाँ संघ के कार्य का प्रमुख हिस्सा हैं।

“संघ 42 संगठनों के माध्यम से राष्ट्र को सशक्त बना रहा है”

वर्तमान परिदृश्य में संघ अधिकारियों ने कहा कि जातीय संघर्ष, जनसंख्या असंतुलन, पलायन, रोजगार संसाधनों पर कब्ज़ा, और सांस्कृतिक प्रदूषण जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए संघ के 42 संगठन समाज में जागरूकता और सशक्तिकरण का कार्य कर रहे हैं।

कार्यक्रम में हजारों गणवेशधारी स्वयंसेवक शामिल हुए और “भारत माता की जय” के उद्घोष से वातावरण गूंज उठा।

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