शुभ धनतेरस : आरोग्य से समृद्धि की ओर
नई दिल्ली : दिवाली के त्यौहार के आरंभ के प्रतीक धनतेरस के इस शुभ दिन को हम पारंपरिक रूप से समृद्धि, नवीनीकरण और नई शुरुआत के दिन के रूप में मनाते हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, यह दिन समुद्र मंथन यानि ब्रह्मांडीय महासागर के महान मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी और देवताओं के वैद्य धन्वंतरि के दिव्य अवतरण का स्मरण कराता है। यह पवित्र दिन केवल भौतिक समृद्धि का ही नहीं, बल्कि इस गहरे सच का भी प्रतीक है कि वास्तविक संपन्नता संपूर्ण कल्याण से ही आती है। संक्षेप में कहें तो, धनतेरस का त्यौहार हमें याद दिलाता है कि स्वास्थ्य ही सबसे श्रेष्ठ और सबसे चिरस्थायी धन है।
आयुर्वेद के अथाह ज्ञान के अनुसार, धनतेरस का महत्व त्यौहार से कहीं बढ़कर है। यह मौसम में होने वाले महत्वपूर्ण परिवर्तनों के साथ जब हेमंत ऋतु, यानी शीत ऋतु का आरंभ हो रहा होता है उस समय आता है। हमारे प्राचीन ऋषियों के अनुसार इस अवधि को कायाकल्प, विषहरण और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए अत्यंत अनुकूल माना जाता है। इस शुभ दिन से जुड़े पारंपरिक अनुष्ठान, जैसे कि मिट्टी के दीये जलाना और सोने-चांदी के बर्तनों की औपचारिक खरीद, स्वास्थ्य संरक्षण के प्रतीकात्मक और शारीरिक दोनों आयामों को दर्शाते हैं। दीये की प्रज्वलित लौ चेतना के प्रकाश और अज्ञानता के निवारण का प्रतीक है, वहीं अपने उपचार गुणों और शरीर की ऊर्जा को संतुलित करने की उल्लेखनीय क्षमता के कारण सोना और चांदी जैसी कीमती धातुएं आयुर्वेदिक चिकित्सा में हजारों सालों से महत्वपूर्ण मानी जाती रही हैं।
यह पवित्र दिन अंतरावलोकन, कृतज्ञता और सचेत देखभाल को भी प्रोत्साहित करता है। आयुर्वेद हमें सिखाता है कि तीन मूलभूत जैव-ऊर्जाओं—वात, पित्त और कफ जिन्हें सामूहिक रूप से त्रिदोष कहा जाता है उनका सामंजस्यपूर्ण संतुलन कितना आवश्यक है। इनका संतुलन हमारे जीवन में उत्साह, हमें मजबूत बनाने और हमारी दीर्घायु को सुनिश्चित करता है। जब ये तात्विक शक्तियाँ हमारे शरीर में संतुलन में रहती हैं, तो वे ओजस को जन्म देती हैं, यह तीव्र शक्ति, रोग प्रतिरोधक क्षमता और आध्यात्मिक तेज का सूक्ष्म सार है। यह ओजस स्थायी समृद्धि का सच्चा आधार है, जो केवल भौतिक समृद्धि या लौकिक सफलता से कहीं आगे तक फैला हुआ है।
आयुर्वेद की धन-संपत्ति की अवधारणा अत्यंत समग्र और बहुआयामी है। यह हमें सरल किन्तु परिवर्तनकारी अभ्यासों के माध्यम से अपने शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कल्याण में सचेत निवेश करने का निमंत्रण देती हैं। इनमें पौष्टिक मौसमी खाद्य पदार्थों से अपने शरीर का पोषण करना, ध्यान और प्राणायाम के माध्यम से मन की शांति बनाये रखना, पर्याप्त और आरामदायक नींद सुनिश्चित करना, सौहार्दपूर्ण संबंध बनाना और कृतज्ञता एवं संतोष की भावना को बढ़ावा देना शामिल है। ये केवल औपचारिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि चिर-सम्मानित स्वास्थ्य नुस्खे हैं जो हमारी सहनशक्ति को मजबूत करते हैं, हमारी प्रतिरक्षात्मकता को बढ़ाते हैं, तथा हमारे जीवन में स्थिरता और शांति लाते हैं।
धनतेरस के समय होने वाले मौसमी परिवर्तन के दौरान, आयुर्वेदिक पद्धतियों जैसे अभ्यंग (तेल मालिश), घी और गर्म मसालों का सेवन, योग का अभ्यास, तथा पाचन और मौसमी आहार को अपनाने का एक उपयुक्त अवसर होता है। हजारों वर्षों के अनुभवजन्य ज्ञान पर आधारित ये निवारक उपाय हमें मजबूत और स्वस्थ बनाने और बीमारियों को आने से पहले ही रोकने में मदद करते हैं।
आज के आधुनिक समय में, जहाँ जीवनशैली संबंधी विकार महामारी के रूप में फैल रहे हैं और तनाव से जुड़ी बीमारियाँ लाखों लोगों को प्रभावित कर रही हैं, आयुर्वेद का प्राचीन ज्ञान व्यावहारिक, सुलभ और प्रभावी समाधान प्रदान करता है। आयुष मंत्रालय इन पारंपरिक स्वास्थ्य विज्ञान को मुख्यधारा की स्वास्थ्य सेवा में एकीकृत करने के लिए अथक प्रयास कर रहा है, जिससे हर भारतीय परिवार स्वस्थ हो सके और साथ ही इस अमूल्य ज्ञान को दुनिया के साथ भी साझा किया जा सके।
इस धनतेरस पर, मैं सभी नागरिकों से अपने दैनिक जीवन में आयुर्वेदिक पद्धतियों को अपनाने की हार्दिक अपील करता हूँ। सब लोग संतुलित और मौसमी पोषण को प्राथमिकता दें, नियमित स्व-देखभाल दिनचर्या अपनाएँ, सचेत जीवन जिएँ, निवारक स्वास्थ्य उपाय अपनाएँ, और शरीर, मन और आत्मा के बीच सामंजस्य बनाए रखें। आइए, हम इस पावन पर्व का सम्मान केवल सोना-चाँदी खरीदकर भौतिक समृद्धि प्राप्त करके ही न करें, बल्कि अपनी सबसे मूल्यवान और अपूरणीय संपत्ति-अपने स्वास्थ्य और कल्याण में निवेश करने की प्रतिबद्धता लेकर भी करें।
अपनी सभ्यता के ज्ञान में निहित इन सरल, किंतु गहरे रूप से प्रभावी और समय-सिद्ध तरीकों को अपनाकर, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि समग्र कल्याण का दीप्तिमान प्रकाश हमारे घरों को प्रकाशित करे, हमारे परिवारों को स्वस्थ रखे और हमारे समुदायों का उत्थान करे। ऐसा करके, हम न केवल त्योहार के पारंपरिक महत्व का सम्मान करते हैं, बल्कि भावी पीढ़ियों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी भी निभाते हैं।
यह धनतेरस हमारे देश के हर घर में न केवल भौतिक सम्पति बल्कि दीर्घकालिक, सौष्ठव, प्राकृतिक संतुलन, मानसिक शांति और सच्चा आनंद लेकर आए। आइए हम एक ऐसा त्योहार मनाएँ जो वास्तव में शरीर का पोषण करे, मन को ऊर्जावान बनाए और आत्मा का उत्थान करें, जिससे स्वास्थ्य और संपूर्णता की एक अमूल्य विरासत का निर्माण हो सके जो आने वाली पीढ़ियों तक गूंजती रहेगी।
शुभ धनतेरस!
- लेखक : प्रतापराव जाधव, केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री
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